प्रदीपचन्द्र पांडे की ये बड़ी अर्थच्छवियों से घिरी छोटी-छोटी कविताएं एक 56 पृष्ठीय पतले-दुबले संकलन के रूप में मुझे एक पारिवारिक मित्र और प्रदीप की रिश्तेदार श्रीमती गीता पांडे ने पढ़ने के लिए दीं। इस संकलन को 1994 में मध्यप्रदेश साहित्य परिषद, भोपाल के सहयोग छापा गया और इसकी संक्षिप्त-सी भूमिका हमारे समय के सुपरिचित लेखक श्री लीलाधर मंडलोई ने लिखी है। इन कविताओं से गुज़रते हुए मुझे लगा यह कवि सम्भावनाओं की सभी कसौटियों पर बिलकुल खरा उतरता है। लेकिन यह जानना भी उतना ही दुखद है कि इतनी बड़ी सम्भावनाओं वाला ये कवि अब कभी कुछ नहीं लिखेगा। कोई दस बरस पहले म0प्र0 के छतरपुर शहर में उनका देहांत हो गया।