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प्रभुका लीला-मञ्च बने / हनुमानप्रसाद पोद्दार

  (राग काफी-ताल कहरवा)

 प्रभुका लीला-मञ्च बने मेरा यह जीवन।
 खेलें इसमें खुलकर वे मेरे जीवन-धन॥
 चलें-फिरें, नाचें-कूदें, बैठें या सोयें।
 रस बिखेरकर रसिक रुलायें या खुद रोयें॥
 समता, त्याग, विराग, प्रेम-रसका आस्वादन।
 करे दिव्य अविराम देखकर लीला जन-जन॥