प्रभुकी महत्ता और दयालुता-1
( छंद 126, 127)
(126)
कालहूके काल, महाभूतन के महाभूत,
कर्महूके करम, निदान के निदान हौ।
निगम को अगम , सुगम तुलसीहू-सेको,
एते मान सीलसिंधु ,करूनानिधान हौं।
महिमा अपार, काहू बोलको न वारापार,
बड़ी साहबीमें नाथ! बड़े सावधान हौं।
(127)
आरतपाल कृपाल जो रामु जेहीं सुमिरे तेहिको तहँ ठाढ़े।
नाम-प्रताप-महामहिमा अँकरे किये खोटेउ छोटेउ बाढ़े।।
सेवक एकतें एक अनेक भए तुलसी तिहुँ ताप न डाढ़े।
प्रेम बदौं प्रहलादहिको, जिन पाहनतें परमेस्वरू काढ़े।।