सीतावट-वर्णन
( छंद 138 से 140 तक)
(138)
जहाँ बालमीकि भए ब्याधतें मुनिंदु साधु,
‘मरा मरा’ जपें सिख सुनि रिषि सातकी।
सीयको निवास , लव-कुसको जनमथल,
तुलसी छुवत छाँह ताप गरै गातकी।।
बिटपमहीप सुरसरित समीप सोहै,
सीताबटु पेखत पुनीत होत पातकी।
बारिपुर दिगपुर बीच बिलसति भूमि,
अंकित जो जानकी-चरन -जलजातकी।।
(139)
मरकतबरन परन, फल मानिक-से,
लसै जटाजूट जनु रूखबेष हरू है।
सुषमाको ढेरू कैधौं सुकृत -सुमेरू कैंधौं ,
संपदा सकल मुद-मंगलको घरू है।।
देत अभिमत जो समेत प्रीति सेइये,
प्रतीति मानि तुलसी, बिचारि काको थरू है।
सुरसरि निकट सुहावनी अवनि सोहै,
रामरवनीको बटु कलि कामतरू है।।
(140)
देवधुनि पास, मुनिबासु , श्रीनिवासु जहाँ ,
प्राकृतहूँ बट-बूट बसत पुरारि हैं।
जोग-जप-जागको, बिरागको पुनीत पीठु,
रागिन पै सीठि डीठि बाहरी निहारि है।
‘आयसु’ , ‘आदेस’, ‘बाबू’, भलो-भलो भावसिद्ध,
तुलसी बिचारि जोगी कहत पुकारि हैं।
राम-भगतनको तौ कामतरूतें अधिक,
सियबटु सेयें करतल फल चारि हैं।।