सर झुकाने की बारी आये
ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा
पर्वत की तरह अचल रहूँ
व नदी के बहाव सा निर्मल
शृंगारित शब्द नहीं मेरे
नाभि से प्रकटी वाणी हूँ
मेरे एक एक कर्म के पीछे
ईश्वर का हो आशीर्वाद
सर झुकाने की बारी आये
ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा
पर्वत की तरह अचल रहूँ
व नदी के बहाव सा निर्मल
शृंगारित शब्द नहीं मेरे
नाभि से प्रकटी वाणी हूँ
मेरे एक एक कर्म के पीछे
ईश्वर का हो आशीर्वाद