Last modified on 2 मार्च 2011, at 17:47

प्रलय बात / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

 प्रलय बात बात (कविता का अंश)
रूग्ण गात, झरे पात
वही प्रलय प्रबल बात
पृथ्वी में गया फैल
तीक्ष्ण शिशिर और नाश।
तन में जिसके न प्राण
बांह वह बार बार उठा
मांग रहा था त्राण
(प्रलय बात कविता से )