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प्रश्नों के सामने / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

प्रश्नचिह्नों
के सामने
खड़ा हुआ-
देखता हूँ: वृष्टि में-
कागजी महापुरुषों के बहते हुए रंग-रोगन,
सफेद कुर्तों
की थैलियों में
चार रंगों की टोपियाँ, कोयला
और चन्दन;
मन्त्रों का गट्ठर लादे भाड़े के टट्टू
प्रकाश के सात रंगों को अलगाते हुए
प्रिज्म
आग लगे जंगल से भागते हुए हिरन
औ...र
और... मैं
अवाक्।