Last modified on 30 दिसम्बर 2017, at 17:13

प्रश्न / पंकज सुबीर

मैं कब से प्रश्न बन कर भटकता हूँ
मुझे कोई यक्ष नहीं मिलता
जो मुझे थाम ले, सहेज ले
पूछने के वास्ते
किसी युधिष्ठिर से
मैं यूँ ही निरर्थक सा भटकता हूँ
यह जानता हूँ
कि जब तक पूछा न जाए
तब तक
किसी भी प्रश्न का अस्तित्व
कोई मायने नहीं रखता
और फिर अगर
मुझे कोई यक्ष मिल भी गया
और उसने मुझे सहेज भी लिया
और फिर पूछ भी लिया
किसी युधिष्ठिर से
और अगर
युधिष्ठिर ही उत्तर नहीं दे पाया तो
तो मेरा क्या होगा?
शायद तब एक और अश्वत्थामा का जन्म होगा
अश्वत्थामा बन कर भटकने से
बेहतर है
यूँ ही प्रश्न बन कर भटकते रहना
क्योंकि
होती है अधिक पीड़ादायी
अमरता
मृत्यु से भी।