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जल्द
बंद हो जाएंगे सारे कमरे
और तहखाने से शुरू होकर
हम छोड़ेंगे उन्हें
एक एक कर के
जब तक हम नहीं पहुंच जाते बंदूकों तक
जो धरी हुई हैं छत पर।
हम उन्हें भी छोड़ देंगे...
कमरों की तरह
और निकल पड़ेंगे
नए कमरों की तलाश में
अपने ख़ून के भीतर
या अपने नक्शों में।
रचनाकाल : 26 सितम्बर 1984