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प्राकृत सुषमा /राम शरण शर्मा 'मुंशी'

आज चित्र नहीं बनाऊँगा ।
आज तो ...
स्वरों के आरोह-अवरोह के
ध्वज, कलश
चढ़ाऊँगा वाणी के मन्दिर पर,
गोपुर अलंकृत करूँगा
छन्द मंजरियों से,
गमकेंगे ध्वनि-सौष्ठव के मृदंग !

आज तो ...
छहराएँगे निकुंज
उत्फुल्ल अनुभूतियों के
भावानुभव सरोवर में
लहराएँगे
मानस-बिम्बों के अनस्पर्शित प्रतिबिम्ब,
उठेंगे झकोरे बासन्ती बयार के
प्राकृत पटल पर —
थिरकेंगे जीवन-सुषमा के अंग-अंग !