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प्राग में नया वर्ष / येव्गेनी येव्तुशेंको

भूस्खलन हुआ हो अचानक जैसे
तू मुझे चूम रही थी ऐसे
रात थी वह प्राग में नए वर्ष की
सीमा नहीं थी कोई उस दिन तेरे हर्ष की
तेरी बेल्ट का बक्कल चमक रहा था वैसे
आसमान से धरती पर आ चाँद गिरा हो जैसे

विस्फोट हुआ था भीतर तेरे
ज्वालामुखी से लावा ज्यों बह रहा था
मुझे अपनी बाँहों में घेरे
मन तेरा कम्पित स्वर में कुछ कह रहा था
होंठों से होंठ जुड़े थे
तू खो चुकी थी आपा
तेरे चुम्बन से मेरा तन भी
बेचैनी से काँपा
मेरे अधरों को आवेग में तू चूम रही थी ऐसे
सहस्त्रों स्त्रियाँ एक साथ ही मुझे चूम रही हों जैसे

पेट नहीं भरा था तेरा
सिर्फ़ चुम्बन से
मेरे होंठों को निगल रही थी
तू पूरे मन से
काँप रही थी ऐसे जैसे
पाग़ल हो गई हो तू
उछल रहे थे तिल भी सारे
तेरे नाजु़क बदन के

पूरा शरीर तेरा जैसे फिर होंठों में
बदल गया था
और मेरा शरीर उनसे उठती अग्नि में
जल गया था
तू रौंद रही थी मुझको
चूस रही थी
मुँह में घुमा रही थी
होंठों पर नचा रही थी
मसल रही थी, च्यूँट रही थी, गुदगुदा रही थी
मैं भी जैसे फिर किसी पके हुए
फल में बदल गया था

तूने मुझे जैसे अपने काले जादू से
अधरों में बाँध लिया था
पति-पत्नी के सम्बन्धों को कुछ ही
पल में साध लिया था
श्लील-अश्लील की दुनिया से हम
हो चुके थे बहुत दूर
हम पर चढ़ गया था तब बेहद
प्रेमामृत का सुरूर
पहुँच गए थे उस दुनिया में हम तुम दोनों
जहाँ हमारे हृदयों ने फिर
कुछ संवाद किया था

बिस्तर की आँखें भी एकदम बिल्ली-सी
चमक रही थीं
और तकियों को लग चुके थे पंख
ध्वनियाँ निकल रही थीं हमारे
शरीरों से ऐसी
जैसे प्रभु की पूजा में भक्त बजा रहे हों शंख

कितना ऊँचा है प्रेम का
यह संसार
इसमें नहीं अराजक
कोई भी व्यवहार
ऐसा क्या है बने प्रेम के
लिए जो हथियार
आदी हो जाना इसका व्यक्ति को
कर देता बेकार
नहीं जानना प्रेम को गहरे
है बेहद दुख की बात
प्रेम में जो पाग़लपन होता है
वही है आह्लाद

दो शरीर एक-दूसरे में
यूँ गुँथे हुए थे
दो सिर आपस में ऐसे
सुँथे हुए थे
सबकी ईर्ष्या का कारण बनता
उस दिन गर्भाधान
हमने नहीं प्रयोग किया था
उस दिन कोई निदान