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प्रातकाल प्यारेलाल आवनी बनी / कृष्णदास

प्रातकाल प्यारेलाल आवनी बनी॥
उर सोहे मरगजी सुमाल डगमगी सुदेशचाल चरणकंज मगनजीति करत गामिनी ॥१॥
प्रिया प्रेम अंगराग सगमगी सुरंग पाग, गलित बरूहातुलचूड अलकनसनी ॥
कृष्णदास प्रभु गिरिधर सुरत कंठ पत्र लिख्यो करज लेखनी पुन-पुन राधिका गुनी ॥२॥