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प्रामाणिकता / दिनेश शर्मा

जब रामायण औ महाभारत
एक कहानी लगती है
प्रमाणों की प्रामाणिकता
तब बेमानी लगती है

वेद पुराण उपनिषद् जिनको
केवल पुस्तक लगते हैं
अपने अस्तित्व को तलाशते
दर-दर आज भटकते हैं
क्या समझेंगे भारत के
गौरवशाली इतिहास को
अयोध्या काशी मथुरा को
जो केवल नगर समझते हैं
जब खंडहर हुई इमारत
बेकार पुरानी लगती है
प्रमाणों की प्रामाणिकता
तब बेमानी लगती है

स्वार्थरूपी पैमाने पर
खरा नहीं जब पाते हैं
राम और कृष्ण उन्हें
नजर काल्पनिक आते हैं
पुरुषोत्तम बनें कैसे
कैसे चीर हरण रोकें
मिथ्या हैं सारी बातें
कहकर मुक्ति पाते हैं
जब रामसेतु और द्वारका
केवल पानी लगती है
प्रमाणों की प्रामाणिकता
तब बेमानी लगती है

घर में जिसके दुश्मन हों
मुश्किल में पड़ जाता है
आस्तीन में सांप मिलें तो
व्याकुल मन घबराता है
प्रपंचों की चौसर पर
लहुलुहान विश्वास पड़ा
घटमुख पर लगा दूध
विषपान कराया जाता है
जब वार पीठ पर होता है
धरती वीरानी लगती है
प्रमाणों की प्रामाणिकता
तब बेमानी लगती है