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प्रारंभ / नंदेश निर्मल

हर घर है विद्यालय होता
पहले माता और पिता फिर
संतानों को राह दिखाता
पहली सीढ़ी वही बनाता।

कब सोना है कब जागना है
पाठ आज का कल न देखे
ध्यान वही तो है यह रखता
शिक्षक सा हो वह समझाता

पुत्र पिता की छाया होता
पुत्री माता से सजती है
जिस घर में यह बीज अँकुरते
पुष्प वहाँ सुंदर है खिलता।
बात-बात पर गुस्सा करना
बेमतलब के रोब गांठना
जो अभिभावक ऐसा करता
उसका बच्चा राह भटकता।

जो बच्चे हैं, कोमलता की
चाहत में वह ढल जाएगा
ऐसा जो अपनाकर चलते
कभी नहीं वह पछताता।