चैत की पहली भोर में
पके चैती अरहर के खेतों की
विराग-कन्या आँखों में उतरे, उतरती जाये...
करुणा का चन्दन माथे पर, भुजाओं में, वक्ष पर
चरणों में उगे, रेख उगती जाये...
गंध से सारी देह-वल्ली, चेतना-श्री
विलास शैय्या पर मुर्च्छित हो
अबीर-गुलाल की बदरी बरसे, बरसती जाये...
एक तटस्थ जड़ता संवेदनाएँ पिए, पीती जाये...
तब...प्रार्थना के रक्त, पीत, श्वेत, नील, पद्म
कहाँ अर्पित होंगे ? कहाँ ?