करो अब विनय हमारी कान
सीतापति कौशिल्या नन्दन, हे रघुवर सुख खान
तुम्हें पुकार-पुकार हुई है, रसना थकित महान
शक्ति नहीं मुझमें अब थोड़ी, हुए विकल हैं प्राण
दीनबन्धु दुख हरण! सुना है, तुम हो दया निधान
किन्तु आज किस हेतु बताओ, बनते हो पाषाण
क्या इस अवसर भी माया-मृग पीछे हो हैरान
या करते हो असुर निधन हित, सागर पार प्रयाण
आश हीन पृथ्वी यह मुझको, हुई आज बीरान
नहीं दृष्टि पथ में आता है, तुम बिन कोई आन
नाथ कृपा से कठिन काम भी, हो पल में आसान
तैराये थे शिला सलिल में, बोलो तुमने क्या न
तन मनसिज होकर पावे आधि व्याधि से त्राण
हे करुणाकर! करुणा कर अब दो करुणा का दान
-आर्य महिला, 1925