प्रियतम, एक बार और, एक क्षण-भर के लिए और! मुझे अपनी ओर खींच कर, अपनी समर्थ भुजाओं से अपने विश्वास-भरे हृदय की ओर खींच कर, संसार के प्रकाश से मुझे छिपा कर, एक बार और खो जाने दो, एक क्षण-भर के लिए और समझने दो कि वह आशंका निर्मूल है, मिथ्या है! 1935