Last modified on 21 जुलाई 2016, at 09:23

प्रियतम विछोह / शब्द प्रकाश / धरनीदास

जग जन्म भयो सँगही सँग औ, सँगही रस खेल केतो करिये।
सँग ही सँग गौधन छोड़ि चले, सँग ही वन काहुन ते डरिये॥
सँगही यमुना-जल केलिकियो, सँगही सुख सोइ निशा भरिये।
अब ऐसे भये सपनेहु नहीं, धरनी मन धीरज क्यों धरिये॥7॥