प्रिया हो गई खाँटी गृहिणी
सूख गए साजन,
उम्र कैद की सजा भुगतते
बैठे घर-आँगन!
रातों लगी रतौंधी, दिन को साफ नहीं दिखता,
दूर-दूर कुछ शब्द नहीं केवल अक्षर लिखता;
तनिक लिखे को
बहुत समझना-
यही एक कारण।
कहाँ कमाया? कैसा खाया? नहीं मालमत्ता,
मिला कै़दियों से भी बदतर ये वेतन-भत्ता;
शहंशाह हो सका न जीवन-
रहा सिर्फ चारण।
बिना पैर-सिर की ये दुनियाँ, पकड़ नहीं पाता,
टूट रहे हैं पिछले, जुड़ता नया नहीं नाता;
बोली-बानी वही,
किंतु बदले हैं उच्चारण।