Last modified on 18 अक्टूबर 2013, at 21:12

प्रीत-23 / विनोद स्वामी

तूं म्हनै
अर म्हैं तनै
आखै दिन पकड़ायो
सुबड़ रो नाको।
गोडै री दाब लगा’र
दियो बीं रो आंटो,
मारी गांठ।
बंधता गया भारिया
आपणै हेत रा।
अब जद-जद
खेतां में पड़्या दिखै अै भारा
हरेक रै
अेक कानी म्हैं
अर दूजै कानी तूं खड़ी दीखै।