ऐसी करता हूँ तुमसे प्रीत
जैसे गहरे चीड़ों के बीच सुलझाती है हवा ख़ुद को
चाँद चमकता है रोशनाई की तरह आवारा पानी पर
दिन एक-से भागते हैं एक-दूजे का पीछा कर
बर्फ़ पसर जाती है नाचते चित्रों जैसे
पश्चिम से फिसल आते हैं समुद्री पंछी
कभी-कभी एक जहाज़ । ऊँचे-ऊँचे तारे ।
एक स्याही को पार करता जहाज़
आह ! अकेला ।
अकसर मैं उठ जाता हूँ पौ फटते ही और मेरी आत्मा गीली होती है
दूर सागर ध्वनित-प्रतिध्वनित होता है
अपने बंदरगाह पर ।
ऐसी करता हूँ तुमसे प्रीत
ऐसी करता हूँ प्रीत और क्षितिज छिपा लेता है तुम्हें शून्य में
इन सब सर्द चीज़ों में रहते करता हूँ तुमसे अब भी प्रेम
अकसर मेरे चुम्बन उन भारी पोतों पर लद जाते हैं
जो समुद्र को पार करने चल पड़े हैं, बिना आगमन की संभावना के
और मैं पुराने लंगर-सा विस्मृत पड़ा रहता हूँ
घाट हो जाते हैं उदास जब दोपहर बँध जाती है आकर
मेरा क्षुधातुर जीवन निरुद्देश्य क्लांत है
मैंने प्यार किया, जिसे कभी पाया नहीं । तुम बहुत दूर हो
मेरी जुगुप्सा लड़ती है मंथर संध्या से
और निशा आती है गाते हुए मेरे लिए
चाँद यंत्रवत अपना स्वप्न पलटता है
और तुम्हारी आँखों से सबसे बड़ा सितारा टकटकी लगाए देखता है मुझे
और क्योंकि मैं करता हूँ तुमसे प्रीत
हवाओं में चीड़ तुम्हारा नाम गुनगुनाते हैं
अपने पत्तों की तंत्री छेड़ते ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अपर्णा मनोज