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प्रीत की वंदना / संजीव 'शशि'

दिन को सूरज लगे रात को चंद्रमा,
मेरे जीवन को तुमसे उजाला मिला।
बाबरा-सा पुजारी तुम्हें पूजता,
मन के मंदिर प्रिया प्रेम दीपक जला॥

जबसे देखा तुम्हें चेतना गुम हुई,
अब न जाने मुझे रोग कैसा लगा।
जी करे बस तुम्हें देखता ही रहूँ,
मेरी आँखों को भाने लगा रतजगा।
तुम मिले मुझको सारा जहाँ मिल गया,
अब तुम्हारे सिवा किसको देखूँ भला।

चाह कब चाँदनी की तुम्हारे बिना,
कब तुम्हारे बिना भोर की कल्पना।
मन के मंदिर बसाया है मैंने तुम्हें,
गीत मेरे प्रिया प्रीत की वंदना।
आस मन में पले, साँस जब तक चले,
अपनी चाहत का चलता रहे सिलसिला।

मेरा जीवन है केवल तुम्हारे लिये,
मेरी हर साँस पर तेरा अधिकार है।
राह फूलों भरी हो या काँटों भरी,
सँग तुम्हारा मिले मुझको स्वीकार है।

कब है परवाह अंजाम की अब मुझे,
हाथ थामे हुए संग तेरे चला।