Last modified on 26 जून 2009, at 01:44

प्रेमकथा-2 / शुभा

यहाँ प्रतिबद्धता का एक केन्द्र है
आत्मा का उत्खनन होता है
एक ही ओर दौड़ी जाती हैं इच्छाएँ
आत्मा का कोयला सारा
अपनी ही छुपी आग से दौड़ा जाता है
दुख और ख़ुशियाँ सब दौड़ती हैं अपनी दरी लपेटे
ज़मीन तोड़कर पानी बह जाता है एक ही दिशा में
उसी दिशा में दौड़ते हैं होशो-हवास

उस दिशा में खड़ा है एक विखंडन
उम्मीद की चादर में अपने को छिपाए।