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प्रेमचंद को पढ़ते हुए / निशांत

हमारे नाम के भीतर
बैठे होते हैं हमारे पुरखे
उनकी स्मृतियां
हमारी सभ्यताएं संस्कृतियां इतिहास
और कभा-कभी उनका भूगोल भी

क्यों किसी का नाम
गोबर धनिया फेंकना मिठइया होता है
जबकि वह सीधा-सादा सरल-सा होता है
दिखता भी है एकदम वैसा ही

ये सारे नाम वहीं से आते हैं
जहां मिट्टी पानी से सना रहता है हाथ
धूप से भीगा रहता है सर

नामों के पीछे काम करती है
एक गहरी-काली साजिश
बहुत-बहुत समय पहले की साजिश

आज भी बचे हुए हैं ढेर-ढेर नाम

किसी वैदिक मंत्रों की खोज में
उद्धाटित किया होगा उन्होंने यह सूत्र वाक्य
कि उनकी आत्मा पर चिपका दो यह नाम
और कहते रहो – ‘नाम में क्या रखा है’

नाम से खोलते हैं वे एक ताला
एक तिलिस्म
एक सभ्यता
एक संस्कृति
एक इतिहास
और दाखिल हो जाते हैं
आत्मा के गह्वर में टपके ताऊत की तरह

एक नाम लेते हैं वे
सबकुछ स्पष्ट दिखने लगता है उन्हें
नाम नहीं एक मंत्र बुदबुदाते हैं वे
खड़ी कर लेते हैं अपनी अयोध्या

हमारा सारा रहस्य
हमारे उजबक से नामों में छुपा है
धर्मांतरम करने से ज्यादा जरूरी है नामांतरण करना

वे कहते हैं – ‘ नाम में क्या रखा है’

नाम बदलना
एक पूरी सभ्यता पूरी संस्कृति
और कभी-कभी एक पूरा इतिहास बदलना है.