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प्रेमपत्र-2 / मदन गोपाल लढा

रेशमी रुमाल में लपेटकर
जिस तरह
तुमने मुझे सौंपा था
पहला प्रेम-पत्र
आज भी लगता है मुझे
सपना सरीखा।

कभी-कभार
एक सपने में ही
गज़र जाती है
समूची जिंदगानी।


मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा