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प्रेमोन्माद / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

ई हम्में मानै छियै
प्रेम जादा होला पर
कि आदमी जादा मान चाहै छै
मतुर ई तेॅ कहॅ पिया
की चाह, की तड़प, की बदहाली
तोरा सें हमरा में कम छै?
तबेॅ है रं परीक्षा लैके अरथे की?

लेकिन तभियो तोहरे
सच, तोहरे बात लेलौ
हम्में एक असकल्ली लड़की
रात के ई सुन्नॅ बियावान बेरा में
चानन नदी पार करी केॅ
डॅर, लाज आरो भय केॅ कोंची में समेटी केॅ
ई पोपरॅ गाछी ठियाँ ऐली छीं।

को कहियों पिया
कोस भर नदी के बालू
वहेॅ रं उमतैली हम्में पार होय गेलियै
जेनां हिरणी
आपनॅ कस्तूरी गंध सें मतैली
बाघॅ के आगू सें पार होय जाय छै।

आपनॅ हाल की सुनैयौं पिया
चान नदी के कछारी में
गोड़ धरथैं
लागलै कि तोंय बीच नद्दी में
पहैलकै नांकी खाडॅ़ छॅ
हमरा आसॅ में।

झटकली
एक-दू-तीन गोड़ें
वै ठियाँ जबेॅ पहुँचलियै
तेॅ हक सेॅ करी उठलॅ हमरॅ परान
भोआय उठलै एकबारगिये सौंसे देह
ऐन्हॅ लागलै
कि कोय पूस के राती में
कनकन्नॅ पानी में धकेली देलेॅ रहेॅ

मतुर काहीं कुछ नै छेलै
तोंय तेॅ खैर नहिंयेॅ छेलौ पिया
पानी में अट्ट्ट खाली छेलै चान
आरो ओकरॅ उजरॅ किरिण
जे आरो कुछुवे नै
हमरे गुमसुम उदास लोरॅ सें भींगलॅ
मुँह के छाँही छेलै।

मन करै
वही ठियाँ सें घुरी जाँव
मतुर लाचार
मनैं की करतियै?
गोड़े नै घुरलै

नै लोटॅे पारलियै हम्में
नै लोटेॅ पारलियै

तोरा सें मिलै के किंछा
नै चाहतौं
फेरू-फेरू घेरी लै छै हमरा
तोहीं बताबॅ पिया
प्रेम सें वशीभूत होलॅ सौंसे डूबलॅ ई मॅन
केकरॅ-केकरॅ?
कहिया-कहिया लौटलॅ छै?
के-के लोटेॅ पारलॅ छै
प्रेम के ऐन्हॅ मदमातलॅ क्षणॅ में

हमरा लागलै
हमरे नांकी उमतैली
ई नदियो बही रहली छै
समय के छाती पर दौड़ली
धरती पर छितरैली
बिना थकली
अपना पिया सें लिपटै लेॅ ब्याकुल।

हिम्मत बान्ही केॅ एक दाफी फेरू
आगू ताकलौं
आरू आभरी लागलै
कि तोंय पीपरॅ गाछी के फेड़ी में
-सटलॅ खाड़ॅ छॅ हमरे असरा में
तोरॅ उजरॅ दकदक धोती
सौनॅ के हवा सें अठखेली करतें
तोरॅ मखमली कुरता
लम्बा बिखरलॅ केश
तोरॅ मॅन मोहै वाला हँसी

तोरॅ पगलाय दै वाला छुवन
नै जानौं आरो की-की याद आबी मेलै
कि नाची गेलै
हमरा आँखी में
तोरॅ दौड़ी केॅ हाथॅ पर उठैबॅ
बाँही में बान्ही केॅ चूमी लेबॅ
केना भूली जइयै ऊ रस-राग
गालॅ पर काटलॅ दाँतॅ के दाग
सिहरी गेलै ई देह
प्रीतम, खोजै छै फेरू सें ऊ नेह

की कहियौं मीत
तखनी हमरा कत्ते लाज लागलॅ
जखनी पानी पार करै लेली
ठेहुना तांय साड़ी उठैलियै
तेॅ सच कहै छियौं हमरॅ प्राण!
एक गोड़ धारॅ में धरथैं
घुटना भर पानी में डुबलॅ चान
ठठाय केॅ हाँसलै

जेनां कहते रहेॅ
गे साँवरी, कहाँ जाय रहली छै उमतली?
केकरा सें मिलै लेॅ पगलैली?
कैन्हॅ जहान छै
केकरा तरान छै?
जो जो जरूर जो
हमरो वहीं जाना छै
जहाँ जाय रहली छैं तोंय।