पृथ्वी
जैसे घूमती है
धुरी पर अपनी
तुम घूम रही हो
निरन्तर
चाँद जैसे
निहारता है पृथ्वी को
मैं, तुम्हें
मेरे लिए प्रेम
एक दिन का उत्सव नहीं !
पृथ्वी
जैसे घूमती है
धुरी पर अपनी
तुम घूम रही हो
निरन्तर
चाँद जैसे
निहारता है पृथ्वी को
मैं, तुम्हें
मेरे लिए प्रेम
एक दिन का उत्सव नहीं !