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प्रेम / नीता पोरवाल

क्या होते हैं प्रेम में हम
रेशमी कीड़े की तरह जब
बुन लेते हैं इर्द गिर्द अपने
एक खूबसूरत कूकून?

क्या होते हैं प्रेम में हम
सीख लेते है बखूबी जब
सफ़ेद रंग को प्रिज्म से सतरंगा देखना
सिर्फ खुद को खुशियाँ देने के लिये?

क्या होते हैं प्रेम में हम
आँखे मूंदे पलकों की कोरों में मुस्कुराते
खोल रहे होते हैं आहिस्ते किताब के
मुड़े तुडे कोने, हकीकत की जमीं से दूर?

शायद अपने सिवाय
हम कभी नहीं होते किसी के प्रेम में...