1.
जो मैंने खो दिया है
एक अवधारणा थी,
एक दर्शन, एक दृष्टि, महसूस करने का एक विशिष्ट ढंग,
एक संवेदन जो अब कभी मेरे पास नहीं होगा।
(इस तरह मेरी पीड़ा कहीं ज़्यादा मुश्किल है उस पीड़ा से
जो महज़ प्रेम के विलुप्न पर होती है।)
कुछ स्वप्न भी थे जो इन दूसरों की तरह मैंने भी सोचे
थे। उनमें से एक एक शब्द था। उस शब्द को अब मैंने
छोड़ दिया है।
2.
प्रेम सुख था,
सुख ही रहे,
यही हमारी कोशिश थी;
हालाँकि इस कोशिश में हम हमेशा सफल नहीं हुए।
प्रेम की भूमि पर
हमने घृणा को भी पलते हुए देखा।
यह दुख था,
और इस दुख को
कविता में हम कह सकते थे।
3.
मुझे घृणा भी कहनी है अपनी कविता में,
और यह कहना है: मुझे घृणा भी है तुमसे।
तब भी
मैं तुम्हारा नाम नहीं लूँगा:
मैं उस लज्जा को बचा कर रक्खूँगा जिसे प्रेम तक में
तुमने / हमने छोड़ दिया था।
मात्रा प्रेम ही नहीं,
लज्जा भी विषय है कविता में।
4.
हमने सीखा :
प्रेम
करने की ही नहीं,
समझने की भी वस्तु है।
यूँ
ले आए हम कविता में
दर्शन की भाषा,
और प्रेम की ज़रा भिन्न भाषा विकसित करने में
ग़र्क हुए।
बेहतर प्रेम के लिए
उसकी बेहतर समझ पर
बल देने में भी एक सुख था
जो प्रेम के सुख से
कम नहीं था।
5.
तुम सो रहे थे
और तुम्हारे स्वप्न में जो यात्री था
तुम्हारी ओर आता हुआ
वह मैं थी।
जहाँ स्वप्न नहीं था
मैं बहुत दूर चली गई थी
तुमसे बहुत दूर
तुम्हें सोते हुए छोड़ कर।
मैंने तुम्हें छोड़ दिया था
स्वप्न के भरोसे।
मैं लौट भी आती
तो तुम्हारा स्वप्न नहीं टूटता।
6.
यह ख़ुशबू
किसी की नहीं,
न किसी के लिए है।
(उसके हाथों में
El Paso की डिबिया थी।)
यह वो नज़र है जो आँख से बिछुड़ी हुई है,
वस्तु से अलग है।
(वह
चश्मा पोंछ रही थी।)
इस कल्पना का विचरण मात्र शून्य में है।
(कल्पना
नाम था उसका।)
कौन आऐगा,
जाऐगा? कौन तड़पेगा, रोऐगा?
(जूते पहनकर वह बोली।)
स्मृति
किसकी होगी?
7.
मैंने सोचा :
लोग
प्रेम से डरते हैं
(पर चाहते उसी को हैं)
क्योंकि
वह बलि माँगता है
उनके स्व की
(क्योंकि
स्व
तुच्छ है)।
वे जानते हैं प्रेम की राह रक्त से सनी है।
(उसके अन्त से आगे किसी फूल का बिम्ब नज़र आता
है।)
8.
कभी-कभी
हम प्रेम से थक भी जाते थे,
उसे बनाए रखने की निरन्तर कोशिश में।
कभी-कभी
बने रह कर भी वह हमें थकाते हुए चलता था।
कुछ ऐसे भी पल थे
जब हम उसकी बहुत-बहुत बातें करते थे और वह मात्र
बातों में ही बना हुआ नज़र आता था। तब भी हम
बार-बार बोलते थे उसके बारे में, और उसे कविताओं में
लिखते थे।
कितनी बार ऐसा हुआ कि हम उसे भूल जाना चाहते थे,
और भूल भी जाते थे, फिर याद करते थे उसे और वापिस
लाना चाहते थे।