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प्रेम / सुधीर सक्सेना

सृष्टि के आदि में
सिर्फ़ प्रेम था
सृष्टि के अंत में
सिर्फ़ प्रेम होगा

दोनों छोरों के बीच
खड़ा नज़र आऊँगा मैं
अविचल