प्रेम क्या मृदूष्ण स्पर्श का भिखारी ?
प्रेम वि प्रपात
गीत दिवारात
गा रहा अशान्त
प्रेम आत्म-विस्मृत पर लक्ष्य-च्युत शिकारी ।
प्रेम वह प्रसन्न
खेत में निरन्न
दुर्भिक्षावसन्न
सृजक कृषक खड़ा दीन अन्नाधिकारी ।
प्रेम क्या मृदूष्ण स्पर्श का भिखारी ?
प्रेम वि प्रपात
गीत दिवारात
गा रहा अशान्त
प्रेम आत्म-विस्मृत पर लक्ष्य-च्युत शिकारी ।
प्रेम वह प्रसन्न
खेत में निरन्न
दुर्भिक्षावसन्न
सृजक कृषक खड़ा दीन अन्नाधिकारी ।