प्रेम अगम अनुपम अमित सागर सरिस बखान।
जो आवत यहि ढिग बहुरि जात नाहिं रसखान।
आनंद-अनुभव होत नहिं बिना प्रेम जग जान।
के वह विषयानंद के ब्राह्मानंद बखान।
ज्ञान कर्म रु उपासना सब अहमिति को मूल।
दृढ़ निश्चय नहिं होत बिन किये प्रेम अनुकूल।
काम क्रोध मद मोह भय लोभ द्रोह मात्सर्य।
इन सब ही ते प्रेम हे परे कहत मुनिवर्य।