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प्रेम कहानियाँ / रंजना मिश्र

प्रेम कहानियाँ पसंद हैं मुझे
इनके पात्र कई दिनों , हफ्तों और महीनो मेरे साथ बने रहते हैं
फिल्मों की तो पूछिए मत
प्रेम पर बनी फिल्में मुझे हँसाती हैं रूलाती हैं
और स्तब्ध कर जाती हैं
मैं अपनी पसंदीदा फिल्में
कई बार देख सकती हूँ और
हर बार उनमें नया अर्थ ढूँढ लाती हूँ.
ये भी एक वजह है क़ि मेरे दोस्त मुझे ताने देते हैं
और मेरे घर के बच्चे कनखियों से मुझे देख मुस्कुराते हैं
मुझे लगता है
यह दुनिया अनंत तक जी सकती है
सिर्फ़ प्रेम की उंगली थामकर
पर इन दिनों मेरा यकीन
अपने काँपते घुटनों की ओर देखता है बार बार
हम एक दूसरे की आँखों से आँखें नहीं मिला पाते
सचमुच-
अपनी उम्र और सदी के इस छोर पर खड़े होकर
प्रेम कहानियों पर यकीन करना वाकई संगीन है,
ख़ासकर तब-
जब आप पढ़ते हों रोज़ का अख़बार भी !