क्या है
आखिर प्रेम की परिभाषा ?
परिभाषा मित्रता की ?
सारा झगड़ा-फसाद
परिभाषाओं को लेकर ही है
इस दुनिया में
सबके लिए अलग अलग है
परिभाषा लोकतंत्र की
राष्ट्र की परिभाषा
यहाँ तक की भूख की भी
कितने ख़ून-ख़राबे हुए हैं
धर्म की परिभाषा को लेकर
अब तक इतिहास में
आप जानते ही हैं
धर्म-निरपेक्षता भी
इसी पचड़े में पड़ी हुई है अपने मुल्क में
लोग अपने-अपने हिसाब से
बदल देते हैं
जीवन कोई विज्ञान नहीं है
कि उसकी एक परिभाषा तय हो
जैसे कि गुरूत्वाकर्षण की परिभाषा
क्या परिभाषाओं का सम्बन्ध स्वार्थ से भी है
क्या छिपा है कोई स्वार्थ
जब मैं कहता हूँ
अमुक परिभाषा है मेरे लिए प्रेम की
मित्रता की
क्या यह सच है
प्रेम आदमी ज़िन्दगी भर
अपने आप से ही करता है
अपनी परिभाषा से करता है
और कहता है
कि वह दूसरों से कर रहा है प्यार
तो फिर आदमी क्यों नहीं बदलता
अपनी परिभाषा
क्या प्रेम में
व्यक्ति को नहीं बदलना चाहिए
प्रेम की अपनी परिभाषा
मित्रता की परिभाषा
अगर नहीं चाहता है कोई बदलना
तो फिर वह कैसे कहता है
वह ज़िन्दगी भर
किसी का
मित्रा बना रहा सकता है
थोड़ी असहमति की गुंजाइश भी
हमें रखनी चाहिए
आपस में
या फिर एक-दूसरे के लिए
परिभाषा ही बदल लेनी चाहिए
चीज़ों की
यह जानते हुए
कि मृत्यु ही अटल है
कितना कोई भी बताए
उसकी अपनी परिभाषा
पर सत्य यह है
कि मरना सबको है
एक दिन
तो फिर क्यों झगड़े हों जीवन में
इतने परिभाषाओं को लेकर ?