ना पल्लवित
ना पुष्पित
ये रजः कण
अपना कुछ भी नहीं होता
केवल बहाव में
बहते हैं
जो स्वयं को
प्रेयस् हो
वही करते हैं
धूप से पायी
स्वयं की चमक
रंगों के आकर्षण को
महज प्रेम के नाम पर
अर्पित कर देते हैं
स्वयं को सार्थक कर।
ना पल्लवित
ना पुष्पित
ये रजः कण
अपना कुछ भी नहीं होता
केवल बहाव में
बहते हैं
जो स्वयं को
प्रेयस् हो
वही करते हैं
धूप से पायी
स्वयं की चमक
रंगों के आकर्षण को
महज प्रेम के नाम पर
अर्पित कर देते हैं
स्वयं को सार्थक कर।