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प्रेम क्या है ? / विमल कुमार

प्रेम
दूसरे को जानना भी है
ख़ुद को पहचानना भी है
ग़लत को ग़लत
सही को सही
मानना भी है
प्रेम गुसलख़ाने में
गाना भी है
नहाना भी है
किसी को अपने घर
खाने पर बुलाना भी है
किसी का दुख-दर्द सुनना
और अपना बताना भी है
प्रेम
अपना हाथ देकर
किसी को उठाना भी है
काँटे हमें कहीं
तो उसे निकालना भी है
पत्थर है कोई रास्ते में
तो उसे हटाना भी है ।

प्रेम
अगर मान-मनौव्वल है
तो कुछ
उलाहना भी है ।

प्रेम
ज़िन्दगी भर का हिसाब है
जोड़कर
उसमें कुछ घटाना भी है ।
प्रेम जितना जताना भी है
उतना छिपाना भी है ।
प्रेम में आँसू बहाना भी है
मुस्कराना भी है ।