Last modified on 26 अप्रैल 2011, at 22:47

प्रेम में पगी / महेश चंद्र पुनेठा

इन दिनों -
च्यूरे के फूल के मकरंद-सी
मिठास है
उसकी बोली में ।
पूनम की चाँदनी में
झिलमिलाती झील-सी
चमक है
उसकी आँखों में ।
पकने को तैयार
पूलम की लालिमा है
उसके गालों में ।
कलड़े-सी चंचलता है
उसकी चाल में


लगता है जैसे
साक्षात बसंत अवतरित हुआ हो
उसके शरीर में ।
हो न हो वह
पगी है किसी के
प्रेम में
इन दिनों ।