Last modified on 4 जून 2010, at 12:06

प्रेम में रोना / विष्णु नागर

कई बार हमें
इतना प्रेम मिलता है
इतना कि हम डरकर
रोने लग जाते हैं
और इतना रोते हैं
कि हमसे प्रेम करने वाला
दुबारा लौटकर नहीं आता