मै अब वैसा बिलकुल नहीं, जब काग़ज़ का हवाई जहाज़ बनाकर मै अपने को उड़ा देता था -- तुम्हारी ओर । फिर चक्कर.. चक्कर... चक्कर खा कर चक्कर खा कर तुम्हारी छाती पर मुँह के बल टकराकर गिर जाता था । और सचमुच मुझे कोई चोट नहीं लगती थी... और अब.....