Last modified on 11 अप्रैल 2023, at 10:09

प्रेम -समाधि / सुषमा गुप्ता

मेरी देह में इतना ताप
कभी नहीं था
कि तुम्हारी शीतलता को
चुनौती दे सके

इसलिए भी मैंने
हर दफा तुम्हारे स्पर्श के सामने
समर्पण करते हुए
खुद को नीर कर लिया।

हमारे साथ के दिनों में
तुम मिट्टी का घड़ा रहे
और मैं तुम्हारे भीतर
समाया हुआ जल

इस जल से
सौंधी खुशबू तुम्हारी उठती रही।

इन दिनों
जब तुम पास नहीं हो
तब मैं आचमन का जल बन गई हूँ
और तुम मेरा तांबाई कलश।

पवित्र भावना के बिना
मुझ तक पहुँचना
किसी के लिए भी
सदा नामुमकिन रहेगा

धीरे धीरे
भाप बनकर
मैं अपने ही कलश के भीतर
विलीन हो जाऊँगी।

मेरे लिए प्रेम
बस इतनी सी साध भर है।
-0-