1.
उतर चुका होता है देह का नमक
तानपुरे की तरह बैकग्राउण्ड में बजता है बसन्त
गुज़िश्ता तज़ुर्बों के पार झिलमिलाता है दूज का चान्द
टूटे हुए पाँव के लिग़ामेण्ट्स के बाद भी चढ़ी जाती है सँकोच की घाटी
नगाड़े या ढोल नहीं बजते
बस सन्तूर की तरह हिलते हैं कुछ तार मद्धम-मद्धम
इतने मद्धम कि नहीं सुन पाता दाम्पत्य का दरोग़ा
इतना कुहासेदार कि बच्चे तक न देख पाएँ
एक बीज को पूरा पेड़ बनाना है बिना दुनिया के देखे
दरअसल ये उलटे बरगद की तरह पनपते हैं धरती के भीतर
धरती की रसोई में रखी कोयला, तेल और तमाम धातुएँ
इन्हीं के प्रेम के जीवाश्म हैं
जिन्हें भूगर्भशास्त्री नहीं समझ पाते !
2.
बिना बीज का नीम्बू
बिना मन्त्र की प्रार्थना
बिना पानी की नदी
मल्लाह के इन्तज़ार में खड़ी एक नाव है ।
3.
छीजत है चान्द की
बारिश है बेमौसम
पीले गुलाब की हरी ख़ुशबू है
सफ़ेदी में पुती ।