आज मैंने समेट लिए
वे तमाम पाए अनपाए खिलौने
और उन्हें बनाती कल्पनाएँ
कल्पनाओं से निकले बीज
बीज़ से अनफूटे कल्ले
यों भी
इस प्लास्टिकी वक़्त में
जगह भी कहाँ बची है
अवधूत से खिलंदड़ीपन के लिए
आज मैंने समेट लिए
वे तमाम पाए अनपाए खिलौने
और उन्हें बनाती कल्पनाएँ
कल्पनाओं से निकले बीज
बीज़ से अनफूटे कल्ले
यों भी
इस प्लास्टिकी वक़्त में
जगह भी कहाँ बची है
अवधूत से खिलंदड़ीपन के लिए