Last modified on 5 नवम्बर 2009, at 23:00

प्‍यार में पसरता बाजार / अरुणा राय

सारे आत्मीय संबोधन
कर चुके हम
पर जाने क्यों चाहते हैं
कि वह मेरा नाम
संगमरमर पर खुदवाकर
भेंट कर दे

सबसे सफ्फाक और हौला स्पर्श
दे चुके हम
फिर भी चाहते हैं
कि उसके गले से झूलते
तस्वीर हो जाए एक

जिंदगी के
सबसे भारहीन पल
हम गुजार चुके
साथ-साथ
अब क्या चाहते हैं
कि पत्थर बन
लटक जाएं गले से
और साथ ले डूबें

छिह यह प्यार में

कैसे पसर आता है बाजार
जो मौत के बाद के दिन भी
तय कर जाना चाहता है ...