फटेहाल भारत ने जब भी
अर्ज किया दुखड़ा ।
नई इण्डिया ने गुस्साकर
फेर लिया मुखड़ा ।
चर्चा उसने जरा चलाई
महँगाई की थी
लगे आँकड़े फूटी झांझ
बजाने उद्यम की ।
उसने मुँह खोला ही था
खेतों के बारे में
सौ-सौ चैनल देने लगे
पिछड़ने की धमकी।
मुट्ठी में कसकर मुआवजे के
रूपये थोड़े
अपने खेतों पर बुलडोजर
चलता देख गड़ा ।
बहुत किया तप-त्याग
धूप-वर्षा की खेती में
गयी ‘पूस की रात’ न होगा
अब ‘गोदान’ नया ।
परदेसी कम्पनियाँ आकर
फ़सल निचोड़ेंगी
ऐश करो मॉलों में जाकर
चीख़ो मत कृपया ।
पिछड़ गए प्रतिभा के बेटे
नए जुआघर में
जिसका ‘उनसे’ तार जुड़ा है
वही हुआ अगड़ा ।
देख चुका है ग्राह
मछलियों का अन्धा जनमत
क़त्लगाह की ओर जा रही
भेड़ों की क़िस्मत ।
सबके हैं प्रस्थान-बिन्दु
पर संगम-बिन्दु नहीं
तीन कनौजी तेरह चूल्हे-
वालों की ताक़त ।
मौन रही पूरी पंचायत
बड़े सवालों पर
मामूली प्रश्नों पर
सारा देश लड़ा-झगड़ा ।