Last modified on 5 फ़रवरी 2011, at 12:49

फर्क-1 / भरत ओला


पत्थर के टूकड़े
जब लुढ़कते है
टूट कर
तो एक आवाज होती है
गड़गड़ाहट, बेहद, कर्कश, भारी !

मगर
जब फूल टूटता है
तक न आवाज होती है
न गड़गड़ाहट
बूंद दो बूंद
आँसू की
टपक जाती है
जमीं पर
चुपचाप, निस्तब्ध !