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फर्क / कुँअर रवीन्द्र

एक आदमी
गला फाड़ चीखता हुआ
सुना रहा है वेद पुराण की कथा
लोग ताली पीटते हिहिया रहे हैं
वे जानते हैं यह चीखने वाला
और साथ के ढोलकिये
नगाड़े पर दी गई थाप को नहीं सुन पा रहे हैं
 
नगाड़े पर थाप तो पड़ चुकी है
अर्जुन का स्वांग धरे यह आदमी
अब अपने ही चक्रव्यूह में
फंसता नज़र आ रहा है
 
अर्जुन होना और
अर्जुन के स्वांग में फर्क तो होता ही है
 
उतना ही
जितना सत्य और असत्य में