मैंने दालान में
बीज बोए दिन के
और फ़सल उगाई
अँधियारे की ।
अँधियारा फैल गया
घर में, मकान में
पूरे दालान में ।
फिर मैंने खोजा
उस औरत को
जो भटकती
हाथ झटकती
भाग रही थी
अनजान दिशा में ।
पकड़ा जब
ज़ोर से हाथ
तो सुनाई दिया
एक अट्टहास
घबरा के अँधेरे में
जब रौशनी जलाई
तो आईने में सूरत
अपनी ही पाई ।