Last modified on 23 सितम्बर 2012, at 17:53

फ़सादात-१ /गुलज़ार

उफुक फलांग के उमरा हुजूम लोगों का
कोई मीनारे से उतरा, कोई मुंडेरों से
किसी ने सीढियां लपकीं, हटाई दीवारें--
कोई अजाँ से उठा है, कोई जरस सुन कर!
गुस्सीली आँखों में फुंकारते हवाले लिये,
गली के मोड़ पे आकर हुए हैं जमा सभी!
हर इक के हाथ में पत्थर हैं कुछ अकीदों के
खुदा कि जात को संगसार करने आये हैं!!