मैं फल्टन में हूँ
फल्टन सतारा में है
सतारा महाराष्ट्र में
महाराष्ट्र से दिल्ली दूर है
फरीदाबाद से बहुत दूर
मेरे चारों ओर सतारा के पठार हैं
और इलाहाबाद पठार के उस पार
मैं फल्टन में खड़ी हुई ऊँचे पठार देखती हूँ
और देखती हूँ नारियल के पेड़ों की लंबी कतार
देखते-देखते मैं भीग जाती हूँ
समुन्दर का पानी जुहू चौपाटी को लाँघ कर
मेरे पाँवों में आ जाता है
मुम्बई लोकल ट्रेन की तरह धड़धड़ाते हुए
मेरे पास चली आती है
मैं उसे देखती हूँ
और मुझे दिल्ली की मेट्रो याद आ जाती है
मेट्रो जो मुझे दिल्ली रेलवे स्टेशन ले जाती थी
जहाँ से इलाहाबाद बारह घंटे का सफ़र होता था
सफ़र के बीच कानपुर...फतेहपुर...
स्टेशन आते थे
समुन्दर और पठार नहीं