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फागुनवाँ बीतल जाय / मनोज कुमार ‘राही’

पिया घर लौटी केॅ आवोॅ,
फागुनवाँ बीतल जाय

फागुन के रतिया हो सुहावनी,
तोहरे बिन हाय सेजिया मोरी सुनी,
आँखिया नीर बहायेॅ
फागुनवाँ बीतल जाय
पिया घर

पीयूपीयू बोलै नित पपिहवा,
रहीरही हुलसै मोर जियरवा,
सपनवाँ नित रूलाय,
फागुनवाँ बीतल जाय
पिया घर

भोर बहे जब शीतल वसंती,
ओकरा पेॅ कुहकै बेटी, रही कोयलिया
हियरा में अगिया लगाय,
फागुनवाँ बीतल जाय

छोड़ी पिया आवोॅ विद्ेशबा,
नयनवाँ नित बहाबै कजरवा,
आश के दीप जराय,
फागुनवाँ बीतल जाय
पिया घर

तोहरा से मिलन के छटपट जियरा,
बरसों बीतलै देखलोॅ नै तोहें,
फागुन के किरिया तोहरा पियाजी,
मधुर मिलन हो जाय
फागुनवाँ बीतल जाय
पिया घर